लिखना तो
मैं भी चाहता हूं
अपनी आत्म-कथा
लेकिन
हालात इजाजत नहीं देते
कि
जो सच है
वह .. मैं लिख नहीं सकता
और
झूठी बातें
वह .. मैं लिख नहीं सकता
मैं सोच रहा था ..
कैनवास
( डॉ. जे.एस.बी. नायडू की कलम से )
Monday, April 16, 2012
मैं सोच रहा था ..
वे कह रहे थे - सूरज पूरब से निकलता है ..
लेकिन किसी तथाकथित महान ने सुनकर अत्यंत क्रोधित होकर कहा -
क्या फालतू बात करते हैं .. चुप रहिये .. जब आपको नहीं मालूम है .. आपको मालूम होना चाहिये कि सूरज न तो पश्चिम से और न ही उत्तर से और ना ही दक्षिण से उगता है ..
वह अदना सा व्यक्ति, सामने वाले के सम्मान में, संभवतः सामने वाले का लिहाज करता हुआ, क्रोधित चेहरे को देख रहा था ..
तथाकथित सर्वज्ञाता को प्रणाम कर वह लौट गया ..
वह लौट गया .. तो क्या हुआ ? किसी ने पूछा ..
फिर ..
फिर क्या मालूम क्या हुआ ..
क्योंकि शायद वह शुभचिंतक था इसलिये फिर पलटकर उन्हें क्रोधित करने नहीं जाना चाहता था ..
मैं भी वहां खड़ा था ..
मैं सुन रहा था ..
मैं सोच रहा था ..
...............................
वो कह रहे थे -
किसी के बारे में ..
कि देखो .. वे कितने महान हैं कि जब हमने महान कहते हुए, उनकी तारीफ करने लगे तो नतीजा यह निकला कि वे हमें ही बेवकूफ समझने लगे और फिर वे भूल गये कि वे दरअसल क्या हैं और महान कहने वाले को ही गुस्से से मूर्ख कहकर चुप रहने कह दिया ..
फिर ..
फिर क्या ..
वे महान ..
दरअसल तथाकथित महान व्यक्ति ..
मिलने वाले सम्मान को नहीं बचा पाये और फिर अकेले ही रह गये क्योंकि उनकी तारीफ करने वाले को तो उनने, अपने क्रोध से किनारे कर दिया था ..
मैं सुन रहा था ..
मैं सोच रहा था ..
लेकिन किसी तथाकथित महान ने सुनकर अत्यंत क्रोधित होकर कहा -
क्या फालतू बात करते हैं .. चुप रहिये .. जब आपको नहीं मालूम है .. आपको मालूम होना चाहिये कि सूरज न तो पश्चिम से और न ही उत्तर से और ना ही दक्षिण से उगता है ..
वह अदना सा व्यक्ति, सामने वाले के सम्मान में, संभवतः सामने वाले का लिहाज करता हुआ, क्रोधित चेहरे को देख रहा था ..
तथाकथित सर्वज्ञाता को प्रणाम कर वह लौट गया ..
वह लौट गया .. तो क्या हुआ ? किसी ने पूछा ..
फिर ..
फिर क्या मालूम क्या हुआ ..
क्योंकि शायद वह शुभचिंतक था इसलिये फिर पलटकर उन्हें क्रोधित करने नहीं जाना चाहता था ..
मैं भी वहां खड़ा था ..
मैं सुन रहा था ..
मैं सोच रहा था ..
...............................
वो कह रहे थे -
किसी के बारे में ..
कि देखो .. वे कितने महान हैं कि जब हमने महान कहते हुए, उनकी तारीफ करने लगे तो नतीजा यह निकला कि वे हमें ही बेवकूफ समझने लगे और फिर वे भूल गये कि वे दरअसल क्या हैं और महान कहने वाले को ही गुस्से से मूर्ख कहकर चुप रहने कह दिया ..
फिर ..
फिर क्या ..
वे महान ..
दरअसल तथाकथित महान व्यक्ति ..
मिलने वाले सम्मान को नहीं बचा पाये और फिर अकेले ही रह गये क्योंकि उनकी तारीफ करने वाले को तो उनने, अपने क्रोध से किनारे कर दिया था ..
मैं सुन रहा था ..
मैं सोच रहा था ..
Sunday, April 15, 2012
necessary to get posted ..
I thought this .. necessary to get posted -
most dangrous and at times suicidal - is the expression of importance i.e. called the VIP SYNDROME .. by a person, who is ill ..
as this makes the doctor .. to think and work under compulsion ..
most dangrous and at times suicidal - is the expression of importance i.e. called the VIP SYNDROME .. by a person, who is ill ..
as this makes the doctor .. to think and work under compulsion ..
Tuesday, April 10, 2012
ये हकीकत है
कि
मेरे चारो तरफ ..
जिधर भी नजर घुमाता हूं ..
महान या अत्यंत महान ही
दिखलाई पड़ते हैं ..
मैं सोच रहा था ..
कि ..
सपने में भी
शायद ..
इसलिये
सभी का
स्तुति गान चालू रखता हूं ..
मेरी इन पंक्तियों को पढ़कर किसी ने कहा - कि आप तो डरपोक किस्म के मालूम पड़ते हैं .. सुनकर मैंने कहा - हुजूर .. कृपया 'किस्म' को हटा दीजिये और "बेहद" विश्लेषण जोड़ दीजिये .. क्योंकि .. मैं आपसे भी डरता हूं .. कि आप भी तो अत्यंत महान हैं ..
कि
मेरे चारो तरफ ..
जिधर भी नजर घुमाता हूं ..
महान या अत्यंत महान ही
दिखलाई पड़ते हैं ..
मैं सोच रहा था ..
कि ..
सपने में भी
शायद ..
इसलिये
सभी का
स्तुति गान चालू रखता हूं ..
मेरी इन पंक्तियों को पढ़कर किसी ने कहा - कि आप तो डरपोक किस्म के मालूम पड़ते हैं .. सुनकर मैंने कहा - हुजूर .. कृपया 'किस्म' को हटा दीजिये और "बेहद" विश्लेषण जोड़ दीजिये .. क्योंकि .. मैं आपसे भी डरता हूं .. कि आप भी तो अत्यंत महान हैं ..
Saturday, January 21, 2012
सम्मान और अपमान ..

कोई किसी को सम्मान देता है .. फिर उसकी वजह चोहे कोई भी हो तो यह उसका सौभाग्य है लेकिन .. मैंने यह महसूस किया है कि कभी ऐसा भी होता है कि यदि कोई किसी को सम्मान देते हैं और कारण चाहे कोई भी हो तो सम्मान प्राप्त करने वाला सम्मान देने वाले का निरादर करने लगता है और उसे यह गलतफहमी हो जाती है कि केवल वह ही है जो सर्वत्र जानकार है और बाकी सभी मूढ़-मति ।
जिस तरह से गर्मी में स्वेटर असंगति है ठीक उसी तरह कोई किसी ऐसे विषय पर जिसके बारे में उसे खास जानकारी नहीं हैं अपनी राय देते हुए यह कहे कि वह ही सही हैं और वह भी उस व्यक्ति से जो उस विषय पर सिदध-हस्त है .. और फिर रूके भी नही और झल्लाते हुए व लगभग चीखते हुए कहे कि सामने वाला विषय-सिद्ध-हस्त गलत है .. उसे कुछ भी नहीं मालूम .. और ऐसा इसलिये कि उसने टोककर सही स्थिति से अवगत कराने की कोशिश की । इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं – एक तो यह कि वह आइंदा .. अमुक के सम्मान में, नाराज नहीं करने का सोच कर सही स्थिति नहीं बतायेगा .. व दूसरा कि अमुक भविष्य में न केवल वंचित रह जायगा सही जानकारी से बल्कि सम्मान के बदले में प्राप्त अपना अपमान, हो सकता है कि कमजोर होने की स्थिति में अमुक को अकेला छोड़ दे ।
यहां इतना कह देना पर्याप्त नहीं है क्योंकि ऐसी स्थिति .. फिर वजह चाहे कोई भी हो लेकिन स्वस्थ मानसिकता का परिचायक नहीं है .. और अपने वक्त के प्रभाववश उत्पन्न इस स्थिति का कालांतर में कोई सामाजिक दुष्परिणाम हो इतना ही पर्याप्त नहीं है अमुक को अवसाद की स्थिति में भी ले जा सकता है
Friday, January 13, 2012
मैं सोच रहा था ..
चाहे कोई कविता की पंक्तियां हो या कोई लेख या फिर कोई पेंटिंग हो या फिर कोई चेहरा ही क्यों न हो .. सभी एक समान ही स्थितियां हैं .. किसी को कुछ तो किसी को कुछ अच्छा लगता है ..
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