Friday, January 08, 2010


08 जनवरी 2010 । शुक्रवार ।


मैंने सोचा था कि मेरे ब्लाग पर प्रतिक्रिया व्यक्त किये सभी को अलग- अलग अभिव्यक्त करूंगा लेकिन शायद इसे मेरी अपरिपक्वता कहूं या जो कुछ भी .. जैसा भी आप समझें .. कि मैं ब्लाग की इस दुनिया में नया-नया हूं इसलिये संबंधित तकनिकी जानकारी का अभाव है अतः मैं सभी से क्षमा मांगता हूं कि चाहकर भी उन्हें मैं उनके ब्लाग में जाकर सही ढंग से टिप्पणी नहीं कर पा रहा .. और इसलिये सभी के लिये संयुक्त रूप से मैंने लिखा है -


मेरे ब्लाग पर आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर अच्छा लगा .. । भविष्य में भी ऐसा ही मार्ग-दर्शन व सहयोग आपसे प्राप्त होता रहेगा ऐसी आशा करता हूं । नये वर्ष की ढेर सी शुभ-कामनाएं .. ।
सादर ..
- डा. जेएसबी नायडू ।

Tuesday, January 05, 2010

title - land scape / size - 17 inch x 29 inch / media - oil / painting by - dr jsb naidu /
05 जनवरी 2010 । मंगलवार । किसी भी हल्की सोच को प्रश्रय देने का परिणाम शायद पानी में तैरते उस पत्ते की तरह है जिसकी प्रकृति हल्की होने के कारण वह पानी के उपर तैरता रहता है और किसी को भी आसानी से दिख जाता है .. फिर एक समय ऐसा प्रारंभ होता है कि जब वह सढ़ना शुरू होता है । यह वह स्थिति है जब वह पानी को दूषित कर देता है । इसके ठीक विपरीत किसी भारी चीज की होती है .. जिसकी फितरत होती है गहराई में डूब जाना .. । प्रकृति के ऐसे कई उदाहरण हैं जिनको हम शायद अनदेखा कर जाते हैं लेकिन वे प्रेरणादायक व मार्गदर्शक हो सकते हैं । दरअसल मुफ्त में उपलब्ध इन स्थितियों को हम ध्यान नहीं दे पाते हैं और इसकी वजह शायद प्रीआकूपाइड माइन्ड या फिर और कोई भी कारण हो सकता है .. जो आप जैसे विद्वान समझ सकते हैं .. ।
- डा. जेएसबी नायडू

Monday, January 04, 2010

04 जनवरी 2010 . सोमवार .

पेंटिंग्स् को लेकर मैं जूनूनी हूं । जिंदगी की तमाम जरूरी बातों में मेरा यह शौक भी शामिल है । यह मुझे सुकून देता है और उरजा से भर देता है । लेकिन जब भी फुरसत के लम्हे मिलते हैं मैं आजकल लिखना पसंद करता हूं ।

- डा. जेएस.बी नायडू

Sunday, January 03, 2010

03 जनवरी 2010 . रविवार .
कुछ युवाओं को मैंने बातें करते हुए सुना - हमें तो वही कैरियर चुनना चाहिये जो हमको पसंद हो । जबकि मेरे माता-पिता सख्त खिलाफ हैं इस बात के लिये कि मैं उनकी बात नहीं मानकर जिद लिये बैठा हूं कि मैं तो अपना कैरियर किसी और ही फिल्ड में बनाना चाहता हूं । मैंने तो अपने डैड से कहा कि आप अपने अनुभव से सोचते हैं जिसमें आपकी परिस्थितियां शामिल रही होंगी । फिर मैंने उनको एक अखबार पढ़ाया जिसमें किसी कामयाब व्यक्ति की कही हुई बात लिखी थी कि मैं आज कामयाबी के उंचे धरातल पर हूं जबकि मेरे पिता ने मेरे स्कूल के दिनों में ही इस फिल्ड में जाने के लिये मना किया था और नाराजगी जताई थी । लेकिन पिता के विरोध के बावजूद मैंने ऐसा किया और देखो अब मैं कितना सफल हूं ।
मैं सोच रहा था कि इक्के-दुक्के उदाहरण को लेकर कोई अपनी बात को सही ठहराने की कोशिश अवश्य कर सकता हैं । लेकिन शायद यह समझना भी जरूरी है कि हर माता-पिता की इच्छा होती है कि उनका बच्चा कामयाब बनें और उसकी जिंदगी में कम से कम प्रतिरोध आये इसलिये उनकी इस भावना को बिना सोचे-समझे अपमानजनक ढंग से ठुकराकर गैरवाजिब, अप्रासंगिक व बेसिरपैर का कहना बुद्धिमानी नहीं है । आप किसी रास्ते से जाकर कोई आरामदायक स्थिति को प्राप्त कर और फिर अपने शौक को पूरा कर सकते हैं । फिल्मों में प्रसिद्ध चिकित्सक व खेल के क्षेत्र में सफलता हासिल करने वालों को नहीं भूलना चाहिये कि किसी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने के बाद अपने मनचाहे कैरियर में जाकर उन्होने कामयाबी हासिल की ।
मैंने इसी विषय पर किसी उम्र दराज से बात किया तो उनका कहना था - किसी मंजिल को प्राप्त करने के बाद फिर यदि कोई अपने शौक पर जा टिकता है और वहीं कामयाबी के नये आयाम स्थापित करता है तो यह शायद ज्यादा अक्लमंदी की बात होगी ।
सोच के इस आयाम को भी तो नकारा नहीं जा सकता .. ।

- डा. जेएसबी नायडू

Saturday, January 02, 2010

Saturday, January 2, 2010

02 जनवरी 2010 . शनिवार ।आज कोई लेख लिखते हुए मुझे यूं ही याद आ गया कि किसी ने कभी मुझसे पूछा था कि आपको कौन सा रंग पसंद है और फिर मेरे उत्तर की प्रतिक्षा किये बगैर ही मुझे अवगत कराया गया कि उन्हें तो लाल रंग पसंद है लेकिन नीला रंग नहीं । दृढ़ता किसी भी स्तर पर ठीक नहीं है । दृढ़ता शरीर की बढ़ी हुई उम्र में होती है लेकिन बचपन तो लचीलापन लिये हुए होता है । प्रकृति में लाल रंग के फूल भी हैं और पेड़ों का रंग हरा है व वहीं आकाश का नीलापन भी अपना अस्तित्व बनाए हुए है । प्रकृति के इन संकेतो को नजरअंदाज करना शायद बुद्धिमानी नहीं है ।